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By Mahak Phartyal | 24-4-2025
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11.4% से ज्यादा भारतीय मधुमेह से पीड़ित हैं, और 15% से अधिक भारतीय प्री-डायबिटिक हैं। यही वजह है कि भारत को “डायबिटीज की राजधानी” कहा जाता है। अब समय आ गया है कि हम अपनी जीवनशैली और खान-पान को लेकर सतर्क हो जाएं। लेकिन क्यों? क्या डायबिटीज वाकई इतनी गंभीर बीमारी है?
हर 100 में से 11 से ज्यादा मौतें डायबिटीज के कारण होती हैं, जो इसे दुनिया की सबसे खतरनाक बीमारियों में से एक बनाती है। यह किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकता है, और अगर इसे समय रहते कंट्रोल न किया जाए, तो यह कई गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है।
तोह चलिए डायबिटीज और प्री-डायबिटीज से जुड़ी कुछ जरूरी बातें समझते है। साथ ही, यह भी समझते है कि आप अपने ब्लड शुगर को प्रभावी ढंग से कैसे मैनेज करके एक स्वस्थ जीवन जी सकते हैं।
जब किसी व्यक्ति का ब्लड शुगर लेवल सामान्य से ज्यादा लेकिन डायबिटीज से काम हो तो इसे प्री-डायबिटीज कहा जाता है। इसे बॉर्डरलाइन डायबिटीज भी कहते हैं, क्योंकि यह एक संकेत है कि अगर समय पर सावधानी नहीं बरती गई, तो आगे चलकर मधुमेह हो सकता है। अच्छी बात यह है कि इस स्थिति में सही खान-पान और जीवनशैली में बदलाव लाकर ब्लड शुगर को फिर से सामान्य स्तर पर लाया जा सकता है। इसलिए, इसे मधुमेह का निवारक चरण भी माना जाता है।
अगर आपका शुगर लेवल प्री-डायबिटिक रेंज में है, तो यह आपके लिए एक संकेत है कि अब सेहत पर ध्यान देना बेहद जरूरी है!
जब शरीर रक्त शर्करा के स्तर को सामान्य सीमा में बनाए रखने में असमर्थ हो जाता है, तो इसे मधुमेह कहा जाता है। यह तब होता है जब शरीर इंसुलिन के प्रति प्रतिरोधी हो जाता है या पर्याप्त इंसुलिन नहीं बना पाता।
एक स्वस्थ व्यक्ति में उपवास के दौरान ब्लड शुगर का स्तर 70 से 99 mg/dL के बीच रहता है, जिसे सामान्य माना जाता है। जब ब्लड शुगर बढ़ता है, तो अग्न्याशय इंसुलिन नामक हार्मोन स्रावित करता है, जो ग्लूकोज को ऊर्जा के रूप में उपयोग करने के लिए कोशिकाओं, यकृत और मांसपेशियों तक पहुँचाने में मदद करता है।
लेकिन जब किसी व्यक्ति को मधुमेह होता है, तो या तो उसका शरीर पर्याप्त इंसुलिन नहीं बनाता, या फिर उपलब्ध इंसुलिन का सही उपयोग नहीं कर पाता। नतीजतन, ग्लूकोज कोशिकाओं तक नहीं पहुँच पाता और रक्त में जमा होने लगता है, जिससे ब्लड शुगर का स्तर बढ़ जाता है। यह स्थिति शरीर के विभिन्न अंगों पर गंभीर प्रभाव डाल सकती है और अगर इसका समय पर नियंत्रण न किया जाए तो जटिलताएँ बढ़ सकती हैं, जो जानलेवा भी हो सकती हैं।
मधुमेह के कई प्रकार होते हैं, लेकिन सबसे आम प्रकार टाइप 1, टाइप 2 और गर्भकालीन मधुमेह हैं। इस बीमारी के लक्षण हर व्यक्ति में अलग हो सकते हैं, जो उनके ब्लड शुगर लेवल, उम्र, जीवनशैली और अन्य कारकों पर निर्भर करते हैं।
इस स्थिति में, शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली गलती से अग्न्याशय की इंसुलिन बनाने वाली बीटा कोशिकाओं पर हमला कर उन्हें नष्ट कर देती है। नतीजतन, शरीर में इंसुलिन का उत्पादन पूरी तरह बंद हो जाता है। इस बीमारी का कोई निश्चित कारण अब तक पता नहीं चला है, लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि आनुवंशिकता और कुछ पर्यावरणीय कारक इसको ट्रिगर करते हैं। यह एक ऑटोइम्यून बीमारी है और आमतौर पर बचपन या युवावस्था में ही इसका निदान हो जाता है।
इस प्रकार के मधुमेह में अग्न्याशय इंसुलिन तो बनाता है, लेकिन वह शरीर की जरूरत के लिए पर्याप्त नहीं होता, जिससे ब्लड शुगर लेवल सामान्य सीमा में नहीं रह पाता। यह सबसे आम प्रकार का मधुमेह है और अधिकतर उन लोगों में पाया जाता है, जो मोटापे से ग्रस्त होते हैं या जिनके परिवार में पहले से मधुमेह का इतिहास होता है।
यह एकमात्र ऐसा मधुमेह है, जो इंसुलिन की कमी के कारण नहीं होता। यह गर्भावस्था के दौरान तब होता है, जब इस अवधि में बनने वाले हार्मोन इंसुलिन की प्रभावशीलता को कम कर देते हैं। हालांकि, यह स्थिति आमतौर पर डिलीवरी के बाद ठीक हो जाती है और पूरी तरह से रिवर्सिबल होती है। लेकिन जिन महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान यह समस्या होती है, उन्हें भविष्य में टाइप 2 डायबिटीज होने का खतरा बढ़ जाता है।
मधुमेह और डिप्रेशन अक्सर एक साथ चलते हैं, जो उनको जीवन को और भी कठिन बना देते है। लेकिन कैसे?
मधुमेह से पीड़ित लोगों को हर दिन अपने ब्लड शुगर लेवल, डाइट, दवाओं और जीवनशैली में बदलाव का ध्यान रखना पड़ता है। लगातार इन चीजों को मैनेज करना काफी तनावपूर्ण होता है, जिससे भावनात्मक असंतुलन पैदा होती है। इसके अलावा, मधुमेह से ग्रस्त लोगों में अक्सर ऊर्जा का स्तर अस्थिर रहता है, जिससे निराशा की भावना बढ़ जाती है।
जब कोई व्यक्ति मानसिक रूप से कमजोर महसूस करता है, तो उसे अपने इलाज पर टिके रहना और भी मुश्किल लगने लगता है। जिस वजह से वो अपने मधुमेह को ठीक से कंट्रोल नहीं कर पाते, और अपने शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य कहरब कर बैठते है। और यह सिलसिला लगातार चलता रहता है, जिससे मधुमेह के रोगी कमजोर और मानसिक रूप से कम सहनशील हो जाते हैं।
अगर ब्लड शुगर का स्तर लंबे समय तक बढ़ा रहे, तो यह शरीर में कई गंभीर समस्याएँ पैदा कर सकता है, जैसे:
इसलिए, मधुमेह का सही प्रबंधन न सिर्फ शारीरिक बल्कि मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी बेहद ज़रूरी है।
भले ही मधुमेह एक लाइलाज बीमारी है, लेकिन सही देखभाल और जीवनशैली में कुछ ज़रूरी बदलाव करके कोई भी मधुमेह रोगी सामान्य और स्वस्थ जीवन जी सकता है।हालाँकि “डायबिटीज़ रिवर्सल” जैसी कोई चीज़ नहीं होती, लेकिन ब्लड शुगर को नियंत्रण में रखना संभव है। अगर आप अपनी चीनी की खपत को कम करें और खानपान पर ध्यान दें, तो आप भी एक सामान्य व्यक्ति की तरह जीवन जी सकते हैं।
याद रखें, आपके रोज़मर्रा का रूटीन और आहार यह तय करता है कि आपके शरीर में ग्लूकोज़ का स्तर कितना होगा। अगर आप अपने जीवन को अनुशासित रखें और सोच-समझ कर अपनी भोजन चुनें, तो मधुमेह के साथ भी आप एक स्वस्थ और संतोषजनक जीवन जी सकते हैं।
याद रखें, मांसपेशियाँ ही आपकी असली दोस्त हैं। जितनी मजबूत मांसपेशियाँ होंगी, उतनी ही कम जटिलताएँ मधुमेह से जुड़ी होंगी। मांसपेशियाँ रक्त से सीधे शुगर को अवशोषित कर सकती हैं, जिसके लिए इंसुलिन की जरूरत नहीं पड़ती। इसलिए, अपनी दिनचर्या में एक नियमित वर्कआउट शामिल करें, वज़न उठाएँ और कार्डियो एक्सरसाइज़ करें। यह खराब कोलेस्ट्रॉल को कम करने में मदद करेगा, जो मधुमेह को नियंत्रित करने का सबसे अच्छा तरीका है।
आपको आपके डॉक्टर से बेहतर सलाह कोई नहीं दे सकता। नियमित रूप से डॉक्टर से परामर्श लें और उनसे पूछें कि आपको ब्लड शुगर कंट्रोल करने के लिए क्या करना चाहिए। अगर वो रोज़ाना आपको कम मात्रा में एस्पिरिन लेने की सलाह देते हैं, तो उनकी बात मानें। इससे हार्ट अटैक और स्ट्रोक का खतरा कम हो सकता है।
नियमित रूप से ब्लड ग्लूकोज़ लेवल चेक करना ज़रूरी है, ताकि आप अपने आहार और दिनचर्या की सही योजना बना सकें।
डाइट में बदलाव गेम चेंजर साबित हो सकता है। कार्बोहाइड्रेट से बचें और प्रोटीन की मात्रा बढ़ाएँ।
मधुमेह को प्रभावी तरीके से मैनेज करने के लिए अपनी दवाएँ कभी न छोड़ें और उन्हें समय पर लें।
अध्ययनों से पता चला है कि पारंपरिक सिलाई मशीन का उपयोग करने वाले दर्ज़ियों को शायद ही कभी मधुमेह होता है। पर ऐसा क्यों? इसके पीछे एक महत्वपूर्ण वैज्ञानिक कारण है।
हमारे पैरों में सोलियस मसल्स (काफ मसल्स) होते हैं, जो रक्त शर्करा को अवशोषित करने में बेहद सक्षम होते हैं।
पारंपरिक सिलाई मशीनों का उपयोग करने वाले दर्ज़ी लगातार अपनी काफ मसल्स का उपयोग करते हैं, जिससे उनका ब्लड शुगर लेवल कम रहता है। उनके निरंतर पैरों की हलचल अग्न्याशय (पैंक्रियास) पर अनावश्यक दबाव नहीं डालती, जिससे इंसुलिन का संतुलित स्तर बना रहता है और शरीर इंसुलिन प्रतिरोधी नहीं बनता। इसलिए, वे मधुमेह से सुरक्षित रहते हैं।
ये समझना कि हमारे शरीर में ब्लड शुगर लेवल कैसे बदलता है, मधुमेह को नियंत्रण में रखने का सबसे प्रभावी तरीका है। अगर आप नियमित रूप से प्रोटीन सेवन और अपने शारीरिक गतिविधियों पर ध्यान दें, तो आप आसानी से ब्लड शुगर लेवल को कम कर सकते हैं।
अगर आपको ज़्यादा एक्सरसाइज़ करना कठिन लगता है, तो बैठे-बैठे पैरो को हिलाएं (फिजेटिंग करें), खासकर खाने के बाद। यह ब्लड शुगर कम करने का एक शानदार तरीका है।
मधुमेह के साथ जीना भावनात्मक रूप से भी थकाने वाला हो सकता है, इसलिए किसी करीबी से बात करना बेहद ज़रूरी है। यह तनाव कम करने और भावनाओं को संभालने में आपकी मदद कर सकता है। साथ ही, ऐसे डॉक्टर से सलाह लें जो आपकी बात को समझे और धैर्यपूर्वक सुने।
याद रखें, मधुमेह के साथ भी आप एक खुशहाल और स्वस्थ जीवन जी सकते हैं।